A Hindi Poem that is so meditative and so so beautiful
तुमुल कोलाहल कलह में, मैं हृदय की बात रे मन।
विकल हो कर नित्य चंचल
खोजती जब नींद के पल
चेतना थक–सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन।
खोजती जब नींद के पल
चेतना थक–सी रही तब, मैं मलय की वात रे मन।
चिर विषाद विलीन मन की,
इस व्यथा के तिमिर वन की
मैं उषा–सी ज्योति-रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन।
इस व्यथा के तिमिर वन की
मैं उषा–सी ज्योति-रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन।
जहाँ मरू–ज्वाला धधकती,
चातकी कन को तरसती,
उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन।
चातकी कन को तरसती,
उन्हीं जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन।
पवन की प्राचीर में रुक,
जला जीवन जी रहा झुक,
इस झुलसते विश्वदिन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन।
जला जीवन जी रहा झुक,
इस झुलसते विश्वदिन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन।
चिर निराशा नीरधर से,
प्रतिच्छायित अश्रु सर से,
मधुप मुखर मरंद मुकुलित, मैं सजल जल जात रे मन।
प्रतिच्छायित अश्रु सर से,
मधुप मुखर मरंद मुकुलित, मैं सजल जल जात रे मन।
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