दो बूँदें सावन की हैं, एक सागर की सीप में टपके और मोती बन जाये


दो  बूँदें सावन की हैं, दो बूँदें सावन की 
एक सागर की सीप में टपके और मोती बन जाये 
दूजी गंदे जल में गिरकर अपना आप गंवाये 
किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष  लगाए 
दो  बूँदें सावन की हैं, दो  बूँदें सावन की  !!

दो कलियाँ गुलशन की हैं, दो कलियाँ गुलशन की 
इक सेहरे के बीच में गुंधे और मन ही मन इतराये 
इक अर्थी की भेंट चढ़े और धूलि में मिल जाए 
किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष  लगाए 
दो कलियाँ गुलशन की हैं, दो कलियाँ गुलशन की  !!

दो सखियाँ बचपन की हैं, दो सखियाँ बचपन की 
इक सिंहासन पर बैठे और रूपमति कहलाये 
दूजी अपने रूप के कारण गलियों में बिक जाए 
किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष  लगाए 
दो सखियाँ बचपन की हैं, दो सखियाँ बचपन की  !!
             -- साहिर लुधयानवी 

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