मैं तुम्हें पहचान लूंगी
तुम छिपो चाहे जहां प्रिय, मैं तुम्हें पहचान लूंगी
कुमुदिनी के शशि बनो, अथवा
कमल के रवि बनो तुम;
तुम उषा के प्राणवल्लभ, या
निशा की छवि बनो तुम।
दिवस हो या रात्रि हो, पर मैं तुम्हें तो जान लूंगी ।।
तुम्हीं में अरमान मेरे,
हो तुम्हीं धन - मान मेरे,
हैं तुम्हारे ही लिए
दिन - रात नंदित गान मेरे।
मैं तुम्हीं में घुल गई प्रिय, और क्या वरदान लूंगी ।
तुम छिपो चाहे जहां प्रिय, मैं तुम्हें पहचान लूंगी ।।
- अज्ञात कवि
Comments