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Showing posts from 2020

कबीर - जैसे पूर्णिमा के चाँद !!

 My humble attempt at studying the lovely couplets from Kabir. I have picked up a few and on daily bases, have been studying and translating one couplet. Started doing this around a month back and have started to get inebriated and drunk in his "wine". I hope you shall enjoy what you read in the page below and the colour will catch your soul as well ..... 1) माला कहे है काठ की, तू क्या फेरत मोहे     मन का मनका फेर ले, तुरत मिला दूँ तोहे। 2) कबीर' रेख सिंदूर की, काजल दिया न जाइ     नैनूं रमैया रमि रह्या, दूजा कहाँ समाई। 3) मालिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार     फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार। 4) पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़     घर की चाकी कोई न पूजे, जाको पीस खाए ससांर। 5) लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात     दुल्हा दुल्हन मिल गए, फीकी पड़ी बारात। 6) आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में      मन लागो यार फकीरी में। 7) कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहाये     जीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आय...

मैं तुम्हें पहचान लूंगी

तुम छिपो चाहे जहां प्रिय, मैं तुम्हें पहचान लूंगी कुमुदिनी के शशि बनो, अथवा कमल के रवि बनो तुम; तुम उषा के प्राणवल्लभ, या निशा की छवि बनो तुम। दिवस हो या रात्रि हो, पर मैं तुम्हें तो जान लूंगी ।। तुम्हीं में अरमान मेरे, हो तुम्हीं धन - मान मेरे, हैं तुम्हारे ही लिए दिन - रात नंदित गान मेरे। मैं तुम्हीं में घुल गई प्रिय, और क्या वरदान लूंगी । तुम छिपो चाहे जहां प्रिय, मैं तुम्हें पहचान लूंगी ।।                                                  - अज्ञात कवि

Walking with Nanak - जपजी साहिब !! इक ओंकार सतनाम !!

I am a student, a sikh in that term. Aspiring to walk with Nanak and hear through his words that reverberation of Onkar. Below is my journey to understand what Guru said as his first message - जपजी साहिब !! Please feel free to leave your comments/suggestions and help me in this journey of learning. ================================================================== हुकमी होवन आकार।। हुकमी न कहिया जाय।। हुकमी होवन जीअ ।। हुकमी मिलै बड़िआई।। हुकमी उत्तम नीचु।। हुकमी लिखि दुख सुख पाईअहि।।  इकना हुकमी बख्शीस।।  इकि हुकमी सदा भवाईअहि।।  हुकमी अंदर सभु को।।  बाहर हुकुम न कोय।।  'नानक' हुकमी जे बुझे।। त ह्ऊ मैं कहे न कोय ।।२।। Whatever is worthwhile in your life, you will find that words fall short of describing it. Then what to say about Hukum (the divine command, the cosmic law). It is best known to the silence. From it, has arisen the form as well as formless. It only grants you praise or name in this world. Under it's order, you get your share of happiness or sadness...

First Grief

First Grief from Lipika  by Rabindranath Tagore Note: This little piece of prose has been one of my favorites for more than 2 decades now. I realized that this book is no more easily available either in physical form or e-form and thus thought to save some parts of it in my blogs and let it become an instrument in reaching unto the right audience one day, somewhere, in some part of the universe. (Aashish Singla)   Grass covers the spot where once a path led through forest shade.  In its solitude, suddenly someone said behind me , "Don't you know who I am?" I turned around and gazed at the face. I said, "I remember, but I'm not sure of the name ----" She said, "I was yours long ago, the grief of your twenty-fifth year" In the soft corners of her eyes something shone, as if a moonbeam in the deeps of a lake. I stood stock-still in wonder. I said, "I saw you that day dark and overcast, a stormy rain-cloud; today, I see an image of the fresh light...

Aaryan and Gurudwara/Church

  The world seems beautiful as I look into the eyes of my 3.5 year old son who is happily spinning away yarns sitting on a swing in the Empress Gardens. His eyes twinkle when I mention on our way back home that there is a Gurudwara nearby and perhaps we can drop in. I know he wants to buy a Kada (steel/iron bracelet) and shall be overjoyed...but little do I suspect that the brief visit would openup a flurry of questions in the days to come … While we are spending a leisurely time in our terrace in the evening – looking at the noisy street and varied people, Aaryan asks “Baba, why do we go to Gurudwara?” Me: “ To pray to the God” A:  “and temple?” Me: “Same to pray” as I prepare myself for tougher questions now A: “then why Gurudwara” I pause for a moment and then say “Well, there are more such places of worship. There is a temple, gurudwara, church and mosque. Some people go the temple and call themselves Hindu while some go to Gurudwara and are Sikhs. Chr...

दो बूँदें सावन की हैं, एक सागर की सीप में टपके और मोती बन जाये

दो  बूँदें सावन की हैं, दो बूँदें सावन की  एक सागर की सीप में टपके और मोती बन जाये  दूजी गंदे जल में गिरकर अपना आप गंवाये  किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष  लगाए  दो  बूँदें सावन की हैं,  दो  बूँदें सावन की  !! दो कलियाँ गुलशन की हैं, दो कलियाँ गुलशन की  इक सेहरे के बीच में गुंधे और मन ही मन इतराये  इक अर्थी की भेंट चढ़े और धूलि में मिल जाए  किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष  लगाए  दो कलियाँ गुलशन की हैं, दो कलियाँ गुलशन की  !! दो सखियाँ बचपन की हैं, दो सखियाँ बचपन की  इक सिंहासन पर बैठे और रूपमति कहलाये  दूजी अपने रूप के कारण गलियों में बिक जाए  किसको मुजरिम समझे कोई, किसको दोष  लगाए  दो सखियाँ बचपन की हैं, दो सखियाँ बचपन की  !!              -- साहिर लुधयानवी 

ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ

ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ सुन जा दिल की दास्ताँ ये रात... पेड़ों की शाखों पे सोई सोई चाँदनी तेरे खयालों में खोई खोई चाँदनी और थोड़ी देर में थक के लौट जाएगी रात ये बहार की फिर कभी न आएगी दो एक पल और है ये समा, सुन जा... लहरों के होंठों पे धीमा धीमा राग है भीगी हवाओं में ठंडी ठंडी आग है इस हसीन आग में तू भी जलके देखले ज़िंदगी के गीत की धुन बदल के देखले खुलने दे अब धड़कनों की ज़ुबाँ, सुन जा... जाती बहारें हैं उठती जवानियाँ तारों के छाओं में पहले कहानियाँ एक बार चल दिये गर तुझे पुकारके लौटकर न आएंगे क़ाफ़िले बहार के आजा अभी ज़िंदगी है जवाँ, सुन जा... -- साहिर लुधयानवी