कबीर - जैसे पूर्णिमा के चाँद !!
My humble attempt at studying the lovely couplets from Kabir. I have picked up a few and on daily bases, have been studying and translating one couplet. Started doing this around a month back and have started to get inebriated and drunk in his "wine". I hope you shall enjoy what you read in the page below and the colour will catch your soul as well ..... 1) माला कहे है काठ की, तू क्या फेरत मोहे मन का मनका फेर ले, तुरत मिला दूँ तोहे। 2) कबीर' रेख सिंदूर की, काजल दिया न जाइ नैनूं रमैया रमि रह्या, दूजा कहाँ समाई। 3) मालिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार। 4) पाथर पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़ घर की चाकी कोई न पूजे, जाको पीस खाए ससांर। 5) लिखा लिखी की है नहीं, देखा देखी बात दुल्हा दुल्हन मिल गए, फीकी पड़ी बारात। 6) आखिर यह तन खाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में मन लागो यार फकीरी में। 7) कबीर टुक टुक देखता, पल पल गयी बिहाये जीव जनजालय परि रहा, दिया दमामा आय...